थाली में था ज़हर… और आंखों में मातम! छपरा की वो दोपहर जब मिड डे मील से उठी चीखें और थम गईं 23 बच्चों की सांसे…

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पटना:  राजस्थान के झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में एक सरकारी स्कूल की जर्जर छत गिरने से दर्दनाक हादसा हो गया. अब तक 7 बच्चों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 17 बच्चे घायल बताए जा रहे हैं. हादसा उस समय हुआ जब बच्चे सुबह की प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए थे. लगातार हो रही भारी बारिश के चलते पहले से कमजोर हो चुकी इमारत अचानक भरभरा कर गिर गई. अचानक मची चीख-पुकार और भगदड़ ने पूरे गांव को दहशत में डाल दिया. घायल बच्चों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है, कुछ की हालत गंभीर बताई जा रही है. यह हादसा एक बार फिर 12 साल पुराने उस भयावह मंजर की याद दिला गया, जब बिहार के छपरा जिले के मशरक इलाके में मिड डे मील खाने से 23 मासूम बच्चों की मौत हो गई थी.

6 जुलाई 2013… तारीख जो आज भी बिहार के छपरा जिले के लोगों को सिहरने पर मजबूर कर देती है. एक ऐसा दिन जब स्कूल जाने वाले 23 मासूम बच्चों ने मिड डे मील खाया और फिर कभी घर नहीं लौटे. हम बात कर रहे हैं मशरक ब्लॉक के गंडामन गांव की उस दर्दनाक घटना की, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था. गांव का सरकारी प्राथमिक विद्यालय… बच्चे रोज़ की तरह स्कूल आए थे. उस दिन मिड डे मील में खिचड़ी बनी थी. लेकिन इस खिचड़ी में ज़हर घुला था — और वो ज़हर था ऑर्गेनो फॉस्फोरस नामक कीटनाशक.
बच्चों ने जैसे ही खाना खाया, उन्हें उल्टियां और पेट में मरोड़ शुरू हो गया. कुछ ही घंटों में तबीयत इतनी बिगड़ी कि 23 मासूमों ने दम तोड़ दिया. कई बच्चों को गंभीर हालत में पटना मेडिकल कॉलेज लाया गया, पर उनमें से भी कई नहीं बच पाए. इस हादसे ने पूरे गांव को शोक में डुबो दिया. मां-बाप बिलखते रहे, गांव में मातम पसरा रहा. स्कूल, जो बच्चों का भविष्य संवारने की जगह थी, कब्रगाह बन गई. 

घटना के बाद बड़ा सवाल यह था-आखिर ज़हर आया कहां से? जांच में सामने आया कि खाना बनाने के लिए जो तेल इस्तेमाल किया गया था, उसमें कीटनाशक मिला हुआ था. वह तेल स्कूल की प्रधानाध्यापिका मीना देवी ने अपने घर से मंगवाया था. खाना बनाने वाली कुक ने तेल की गंध की शिकायत की थी, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया.
घटना के बाद पूरे बिहार में हंगामा मच गया. सरकार ने जांच के आदेश दिए, मुआवजा दिया गया, मीना देवी पर केस चला. लेकिन लोगों का सवाल आज भी वही है- क्या बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को वाकई सज़ा मिली? यह स्कूल अब नया बन चुका है. दीवारों पर पेंट है, बच्चे आते हैं, मिड डे मील अब पहले से बेहतर तरीके से तैयार किया जाता है. लेकिन जो 23 मासूम इस लापरवाही की भेंट चढ़ गए, उन्हें कौन लौटाएगा?

 

गांव में आज भी एक स्मारक है, जहां उन बच्चों के नाम लिखे हैं. हर साल 16 जुलाई को गांव वाले उन्हें याद करते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं… और बस यही दुआ करते हैं कि फिर कोई बच्चा ऐसा खाना न खाए, जो उसकी जान ले ले. छपरा की मिड डे मील त्रासदी सिर्फ एक हादसा नहीं था, ये एक सबक था… कि बच्चों की ज़िंदगी से जुड़ी हर जिम्मेदारी पर सख्ती से अमल होना चाहिए. निगरानी हो, जांच हो और अगर लापरवाही हो… तो सज़ा भी हो. ऐसी घटनाएं देश की आत्मा को झकझोर देती हैं. और हमें याद दिलाती हैं कि बच्चों की सुरक्षा से बड़ा कोई एजेंडा नहीं है…