लेखक : डॉ जनक राज
विधायक पांगी भरमौर
आज अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस है — एक दिन जब हम परिवार के महत्व को समझते हैं, और यह भी सोचते हैं कि अगर पूरी दुनिया एक गाँव होती, तो भारत उसमें किस भूमिका में होता?
कल्पना कीजिए कि यह विश्व एक गाँव है। इस गाँव में अनेक परिवार हैं — कुछ अमीर, कुछ गरीब, कुछ संघर्षशील और कुछ समर्थ। इस गाँव में भारत एक ऐसा परिवार है जो कभी बहुत अभावों में था, लेकिन अब अपनी मेहनत, लगन और आत्मबल से आगे बढ़ रहा है। उसने तकनीक, विज्ञान, चिकित्सा, अंतरिक्ष और आर्थिक विकास के क्षेत्रों में ऐसी प्रगति की है कि बाकी गाँव के कई पुराने संपन्न परिवार — जैसे अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस — अब चौंकने लगे हैं। उन्हें लगता है, “यह तो हमारी बराबरी करने लगा है।”
इसी गाँव में कुछ पड़ोसी भी हैं — जैसे चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल। जब वे देखते हैं कि भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, तो उन्हें यह स्वीकार करना कठिन हो जाता है। कहीं ईर्ष्या, कहीं प्रतिस्पर्धा, कहीं संदेह का वातावरण बनता है। कुछ गरीब परिवार, जो कभी भारत के साथी थे, अब सोचते हैं कि “यह तो बड़ा बन गया है, हमारी मदद की क्या ज़रूरत है?” — और सहयोग से पीछे हट जाते हैं।
लेकिन यह सब मानवीय व्यवहार का हिस्सा है। क्योंकि देश भी दरअसल इंसानों से बने होते हैं। देश कोई मशीन नहीं हैं, वे हमारे जैसे सोचते और महसूस करते हैं। और जब भी कोई परिवार — या देश — अपनी मेहनत से ऊपर उठता है, तो उसे स्वीकृति मिलने में समय लगता है।
ऐसे समय में भारत को — एक परिवार की तरह — संगठित होने की ज़रूरत है। हमें आंतरिक मतभेद भुलाकर, एकजुट होकर, आत्मनिर्भरता, शिक्षा, विज्ञान और समावेशी विकास की ओर बढ़ना होगा। क्योंकि जब एक परिवार संगठित होता है, तो कोई तूफ़ान उसे हिला नहीं सकता।
आज जब दुनिया परिवार दिवस मना रही है, भारत को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह अपने सपनों को साकार करने की दिशा में बिना रुके, बिना झुके, लगातार आगे बढ़ेगा।
भारत एक परिवार है — और हम सब उसके सदस्य।
मिलकर चलेंगे, तभी मंज़िल तक पहुँचेंगे।