जज के घर में घुसे नहीं होते तो हो जाता प्रभुनाथ सिंह का एनकाउंटर!… जानें लालू राज में बाहुबली सांसद की अनसुनी कहानी…

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पटना. बिहार के चुनावी हवाओं में उड़ती एक पुरानी कहानी की धूल फिर से उठने लगी है. बिहार में चुनावी मौसम आ चुका है और जब मौसम बदले तो पुराने किस्से खुद-ब-खुद पोखरों से बुलबुले की तरह ऊपर आने लगते हैं. चाय की दुकान, ठेले की बहस और गांव के दालानों में इन दिनों फिर एक नाम सुर्खियों में है प्रभुनाथ सिंह का. एक ऐसा नाम जो कभी ‘छपरा के सीएम’ के नाम से जाना जाता था. 90 से 2000 के बीच प्रभुनाथ सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, राजपूत अस्मिता के प्रतीक माने जाते थे. उन्हें ‘सारण का शेर’, ‘राजपूतों का खेवनहार’ जैसे तमगों से नवाजा जाता था. उनके एक इशारे पर छपरा, मसरख, महाराजगंज और गोपालगंज के राजपूत वोट एकतरफा पड़ते थे. ऐसा कहा जाता था ‘अगर प्रभु टिकट फाइनल कर दें, तो रिजल्ट सिर्फ औपचारिकता है.’ राजनीतिक ताकत का ऐसा जलवा था कि लालू यादव, नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस तक उन्हें इग्नोर करने की हिम्मत नहीं करते थे.

90 के दशक में जब लालू यादव की सरकार पूरे शबाब पर थी, तब एक ऐसा किस्सा उभरता है जिसे सुनकर लोग अब भी कनपट्टी खुजा लेते हैं. ‘अगर जज के घर में न घुसते, तो प्रभुनाथ का एनकाउंटर तय था!’ ये कोई फिल्मी डायलॉग नहीं, बल्कि उस दौर के राजनीतिक पेंच-पेंच का हिस्सा था. पत्रकार कन्हैया भेलारी की मानें तो लालू चाहते थे कि प्रभुनाथ उनके नेतृत्व में झुकें, लेकिन राजपूतों के इस ‘दबंग’ को न तो डर मंजूर था, न ही झुकना.

बात है उन दिनों की जब यादव-राजपूत राजनीति में खाई थी और प्रभुनाथ सिंह, आनंद मोहन के साथ मिलकर बिहार पीपुल्स पार्टी बना चुके थे. लालू को लगा कि ये लोग राजपूतों को लामबंद करके सियासी ज़मीन खिसका सकते हैं. कुछ लोग कहते हैं जब एनकाउंटर की आहट आई, तो प्रभुनाथ सीधे एक जज के घर में शरण ले लिए. अफसरों का काफिला वहीं से वापस लौटा और गोली चलने से पहले बंदूकें झुक गईं. हालांकि ये दावा कोई अदालत में साबित नहीं हुआ, लेकिन बिहार की पब्लिक मेमोरी में ये किस्सा आज भी मिर्च-मसाला के साथ जिंदा है.

प्रभुनाथ सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, राजपूत अस्मिता के प्रतीक माने जाते थे. उन्हें ‘सारण का शेर’, ‘राजपूतों का खेवनहार’ जैसे तमगों से नवाजा जाता था. उनके एक इशारे पर छपरा, मसरख, महाराजगंज और गोपालगंज के राजपूत वोट एकतरफा पड़ते थे. ऐसा कहा जाता था ‘अगर प्रभु टिकट फाइनल कर दें, तो रिजल्ट सिर्फ औपचारिकता है.’ राजनीतिक ताकत का ऐसा जलवा था कि लालू यादव, नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस तक उन्हें इग्नोर करने की हिम्मत नहीं करते थे.

प्रभुनाथ सिंह को लेकर कई किस्से हैं. ऐसे ही दो-तीन किस्से हैं. पटना के MLA फ्लैट में शादी थी, लेकिन शहर में खबर उड़ी कि ‘बम फटा है!’. पता चला, सिर्फ बारातियों की आवाज थी, लेकिन इसने प्रभुनाथ के खौफ को और बड़ा बना दिया. 2009 में एक आईएएस अधिकारी को ‘कफ़न खरीदने’ की धमकी देकर चर्चा में आ गए थे. बोले थे, ‘कफ़न खरीद लीजिए, चुनाव रोकिएगा तो…’ ये वीडियो काफी वायरल हुआ था. 2014 की हार पर खुद तंज कसते हुए कहा था ‘दुख हार का नहीं, एक बकरी से हार गया, यही मलाल है.’ तंज और दबंगई का मिला-जुला नमूना थे प्रभुनाथ.

आज वही प्रभुनाथ सिंह हजारीबाग सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. 1995 मसरख चुनाव के दिन हत्या के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में उन्हें दोषी ठहराया. अशोक सिंह हत्याकांड, जिसमें वो पहले बरी हुए थे, फिर सजा मिली. अब जेल की चारदीवारी से बाहर भले न हों, लेकिन सियासत में उनके परिवार का झंडा अभी भी लहरा रहा है. भाई केदार नाथ सिंह बनियापुर से विधायक हैं. बेटा रणधीर सिंह ने 2024 में आरजेडी छोड़ दिया और निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. हालांकि वह चुनाव नहीं लड़े…