‘नेहरू से राहुल तक… चीन के सामने झुकता रहा गांधी परिवार?’ संसद में फिर उठा पुराना सवाल, जानिए पूरा हिसाब…

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नई दिल्ली: भारत-चीन संबंध हमेशा से सियासत और बहस का बड़ा मुद्दा रहे हैं, खासतौर से गांधी-नेहरू परिवार के संदर्भ में. लोकसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की बहस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने ये मुद्दा फिर ताजा कर दिया. शाह ने जवाहरलाल नेहरू पर अक्साई चिन चीन को सौंपने का आरोप दोहराया. उन्होंने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की डोकलाम विवाद के समय चीनी राजदूत से गुपचुप मुलाकात की ओर भी इशारा किया. नए बने देश में नेहरू के फैसले, अक्साई चिन विवाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की सदस्यता… बीजेपी उन ‘ऐतिहासिक भूलों’ की लिस्ट गिनाने लग जाती है, जो नेहरू-गांधी परिवार के सत्ता में रहते हुईं.

आजादी के बाद नेहरू ने भारत की विदेश नीति को आकार दिया. 1950-60 के दशक में चीन को लेकर उनका रुझान कुछ अलग किस्म का देखा गया. पंडित नेहरू चीन के साथ मित्रता और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के पक्षधर रहे. लेकिन इसी नीति के चक्कर में कई मौके भारत के लिए महंगे साबित हुए.
चीन ने 1950 के दशक में लद्दाख की अक्साई चिन घाटी में सड़क बनानी शुरू की और भारत ने उससे सिर्फ औपचारिक विरोध दर्ज करवाया. नेहरू ने संसद में बयान दिया कि ‘जहां घास का तिनका नहीं उगता, उसकी चिंता क्यों?’ यह बात अमित शाह ने मंगलवार की बहस में भी दोहराई. गृह मंत्री ने एक सांसद के कटाक्ष को याद दिलाया जिसमें कहा गया था कि ‘फिर आपके सिर पर भी बाल नहीं हैं, तो क्या उसे भी चीन को दे दें?’ 

आज 38,000 वर्ग किमी से ज्यादा इलाका चीन के कब्जे में है और भारत की नॉर्दन डिफेंस परमानेंट खतरे में हैं. इतिहासकार मानते हैं कि नेहरू ने अक्साई चिन के रणनीतिक महत्त्व को कमतर करके आंक लिया.
शाह ने आरोप लगाया कि नेहरू की कमजोर विदेश नीति का ही नतीजा है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थायी सदस्य नहीं बन सका. UNSC की स्थायी सदस्यता की अनौपचारिक पेशकश अमेरिका ने भारत को की थी लेकिन नेहरू ने उसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि ‘इससे चीन की भावनाएं आहत होंगी.’
चीन आज सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, भारत बाहर खड़ा है. गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में यही मुद्दा जोर देकर उठाया और इसे नेहरू की ‘चीन झुकाव वाली नीति’ का नतीजा बताया.

1962 के युद्ध के दौरान जब चीन ने उत्तर-पूर्व में आक्रमण किया तो नेहरू ने रेडियो पर ‘असम के लोगों’ को ‘माय हार्ट गोज आउट’ जैसी बातें कहीं, जिसे जनता ने ‘असम को छोड़ देने के भाव’ के तौर पर देखा. इस वक्तव्य की आज भी भाजपा बार-बार आलोचना करती है कि कैसे एक प्रधानमंत्री किसी राज्य के लिए बेबसी दिखा सकता था.

इंदिरा गांधी के दौर में भारत ने थोड़ी कड़ी नीति अपनाई लेकिन चीन के साथ कटुता-मैत्री का दोतरफा सिलसिला चलता रहा. राजीव गांधी की चीन यात्रा (1988) से संबंधों में नई शुरुआत हुई, लेकिन सीमा विवाद बना रहा.
2017 में डोकलाम तनाव के दौरान राहुल गांधी, चीनी एम्बेसडर से दिल्ली में गुपचुप मिले. यह बात तब सामने आई जब चीनी दूतावास ने खुद सोशल मीडिया पर मीटिंग की फोटो शेयर कर दी. भाजपा और जेपी नड्डा ने राहुल पर आरोप लगाए कि वे देश को ‘अंधेरे’ में रखकर ‘सीक्रेट डिप्लोमेसी’ कर रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में आती है. राहुल गांधी ने इस पर सफाई दी कि वह एक जिम्मेदार राजनेता हैं, और ऐसे मुद्दों पर जानकारी रखना उनका काम है.

अमित शाह ने संसद में आरोप लगाया कि नेहरू, सोनिया और राहुल – तीनों ने चीन के सामने बार-बार नरमी दिखाई. न केवल UNSC, बल्कि डोकलाम संकट के वक्त भी कांग्रेस नेतृत्व ‘स्पष्ट’ स्टैंड नहीं ले सका.

कांग्रेस बार-बार कहती है कि भाजपा सिर्फ राजनीतिक बढ़त लेने के लिए नेहरू परिवार को टारगेट करती है. डोमेस्टिक पॉलिटिक्स में बार-बार चीन का डर, जमीन या बाजार छिनने का खतरा गिनाया जाता है. लेकिन कई फैक्ट्स ऐसे हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता. चूके हुए मौकों की कहानी गांधी परिवार के कुछ ऐतिहासिक फैसलों में साफ दिखती है.
आज जिन मुद्दों को अमित शाह और कई दूसरे नेता संसद में उठा रहे हैं, वह केवल राजनीति नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा, विदेश नीति और सामरिक स्वाभिमान से भी जुड़े सवाल हैं. क्या भारत उन गलतियों गलती से सीखेगा? यही असली सवाल है, जिसका जवाब देश को चाहिए…